इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चुनाव ड्यूटी को लेकर शिक्षकों के हित में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट ने कहा कि शिक्षकों को अंधाधुंध तरीके से चुनाव ड्यूटी में नहीं लगाया जाना चाहिए, क्योंकि उनकी प्राथमिक भूमिका शिक्षा देना है। उन्हें बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के रूप में नियुक्त करना केवल अंतिम उपाय होना चाहिए।

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हाई कोर्ट का आदेश
न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यह आदेश झांसी के परिषदीय विद्यालय में कार्यरत शिक्षक सूर्य प्रताप सिंह और कई अन्य जिलों के शिक्षकों की याचिका पर दिया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि शिक्षकों की चुनावी ड्यूटी शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 का उल्लंघन करती है। उन्होंने तर्क दिया कि शिक्षकों को मुख्य रूप से बच्चों को शिक्षित करने के कार्य में ही लगाया जाना चाहिए।
बीएसए झांसी का पक्ष
बीएसए झांसी के अधिवक्ता ने कोर्ट में तर्क दिया कि केंद्रीय चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार शिक्षकों को बीएलओ के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि शिक्षकों की चुनाव ड्यूटी को एक अंतिम विकल्प के रूप में ही देखा जाना चाहिए।
कोर्ट का व्यापक दृष्टिकोण
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शिक्षा किसी भी राष्ट्र की स्वतंत्रता और समृद्धि का इंजन है। यह केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि मानव विकास की समग्र प्रक्रिया का हिस्सा है।
क्या होगा आगे?
इस फैसले के बाद शिक्षकों को चुनाव ड्यूटी में अनावश्यक रूप से लगाए जाने पर रोक लग सकती है। इससे न केवल शिक्षकों को राहत मिलेगी, बल्कि शिक्षा व्यवस्था भी बेहतर होगी। कोर्ट का यह फैसला शिक्षकों की गरिमा और शिक्षा की प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए दिया गया एक अहम निर्णय है।
Blo के संबंध में , समय-समय पर माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश आते रहे हैं।