भारत एक ऐसा देश है जिसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत दुनिया में अद्वितीय है। हाल ही में, कोलकाता में आयोजित एक कार्यक्रम में भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने भारत की महानता पर जोर देते हुए कहा कि इसकी नींव सनातन धर्म में निहित है। उन्होंने भारत को अहिंसा, शांति और भाईचारे का प्रतीक बताया और इसकी 5000 साल पुरानी संस्कृति को दुनिया के लिए मार्गदर्शक बताया।
सनातन धर्म: समावेशिता और सार्वभौमिकता का प्रतीक,
उपराष्ट्रपति ने श्रील प्रभुपाद की 150वीं जयंती समापन समारोह में यह संदेश दिया कि भारत की संस्कृति सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देशभक्ति, समावेशिता और सार्वभौमिक मूल्यों को भी दर्शाती है। सनातन धर्म जाति, पंथ और आर्थिक भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को एकता का संदेश देता है।
उन्होंने कहा कि भारत सदियों से आध्यात्मिक केंद्र रहा है और हमें इसकी इस परंपरा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने नालंदा और तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों के विनाश पर भी चिंता व्यक्त की, जो कभी वैश्विक ज्ञान केंद्र थे। यह भारत की उस समृद्ध शैक्षिक परंपरा का प्रतीक था जिसने पूरी दुनिया को शिक्षा और ज्ञान का प्रकाश दिया।

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भारत: भविष्य का विश्व गुरु
भारत ने सदियों से अपने आध्यात्मिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पूरी दुनिया को प्रभावित किया है। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत भविष्य में “विश्व गुरु” बनने की दिशा में अग्रसर है। आध्यात्मिकता, ज्ञान और तकनीकी उन्नति के साथ, भारत पूरी दुनिया को शांति और अहिंसा का संदेश दे रहा है।
धार्मिक स्थलों की महत्ता
इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने तारापीठ मंदिर में पूजा-अर्चना की और भारत के धार्मिक स्थलों के महत्व पर प्रकाश डाला। भारत के धार्मिक स्थल केवल आस्था के केंद्र नहीं हैं, बल्कि यह संस्कृति, इतिहास और परंपरा के जीवंत प्रमाण भी हैं। इन स्थलों की महत्ता को संजोकर रखना हमारी जिम्मेदारी है।
भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को समझते हुए, हमें इसकी विरासत को और सशक्त बनाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस अद्वितीय परंपरा से प्रेरणा ले सकें।