इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी केस लिस्टिंग प्रणाली में अचानक बदलाव किया है। 3 मार्च 2025 से प्रभावी इस नए प्रारूप में पूरे दिन सभी मामलों को एक ही क्रम में व्यवस्थित किया जाएगा। पहले, मामलों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता था, जिससे वकीलों को प्रत्येक न्यायालय में कार्यवाही की प्रकृति को आसानी से समझने में मदद मिलती थी।

photo credit@livehindustan.com
पुरानी और नई प्रणाली में अंतर
पूर्व में, मामलों को तीन श्रेणियों में सूचीबद्ध किया जाता था:
- नए मामले: क्रम संख्या 1 से 2999 तक
- असूचीबद्ध मामले: क्रम संख्या 3000 से 7999 तक
- विविध आवेदन: क्रम संख्या 8000 से आगे
इस व्यवस्था से वकील अदालतों में आसानी से नेविगेट कर सकते थे और कार्यवाही की प्रकृति को समझ सकते थे।
नई प्रणाली से वकीलों की चुनौतियाँ
संशोधित प्रणाली में अब सभी मामलों को एक ही क्रम में सूचीबद्ध किया जाएगा। इससे अधिवक्ताओं को चल रहे मामलों को समझने के लिए पूरी सूची याद रखनी होगी, जो कई लोगों के लिए कठिन साबित हो सकता है।
हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व संयुक्त सचिव आशुतोष त्रिपाठी ने इस बदलाव के बारे में पूर्व सूचना न दिए जाने की आलोचना की। उन्होंने कहा कि इस अचानक किए गए संशोधन से वकीलों को परेशानी हो रही है, क्योंकि उन्हें नई व्यवस्था को समझने और अपनाने में समय लगेगा।
वकीलों की प्रतिक्रियाएँ
वरिष्ठ अधिवक्ता महेश शर्मा ने भी नई प्रणाली पर चिंता व्यक्त की और कहा कि पूरे डॉकेट पर नज़र रखना अब एक बड़ी चुनौती होगी। बार एसोसिएशन के कई सदस्यों ने इस मुद्दे पर तत्काल विचार करने और समाधान निकालने की अपील की है।
समस्या का समाधान क्या हो सकता है?
वकीलों की मुख्य मांग यह है कि
- इस नई प्रणाली को लागू करने से पहले व्यापक परामर्श किया जाना चाहिए था।
- अदालत को एक हाइब्रिड मॉडल अपनाना चाहिए, जिससे नई और पुरानी दोनों व्यवस्थाएँ संतुलित रहें।
- नई प्रणाली को सरल बनाने के लिए तकनीकी सहायता या डिजिटल टूल्स का उपयोग किया जाना चाहिए।
हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने इस मुद्दे पर चर्चा करने और अधिवक्ताओं की चिंताओं को हाई कोर्ट प्रशासन के सामने रखने की योजना बनाई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यायपालिका इस मामले में आगे क्या कदम उठाती है।